परम आदरणीय सुहृदजन आप सबके समक्ष यह निवेदित करते हुए अत्यन्त आनंद एवं हर्ष का अनुभव हो रहा है कि प्रभु श्रीराम के जन्म स्थल पर भव्य मन्दिर निर्माण के उपलक्ष्य एवं प्रभु के निज भवन में विराजमान होने के आनंदोत्सव रूप में आयोजित 21 श्री रामार्चन महायज्ञ एवं श्री राम कथा का प्रथम शुभारम्भ आगामी 20 अक्टूबर से 28 अक्टूबर 2023 तक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, गोमती तट पर स्थित खाटूश्याम मन्दिर, वीरबल साहनी मार्ग के प्रांगण में श्री रामचरणानुरागी सुप्रसिद्ध कथा व्यास एवं धर्माचार्य परमपूज्य स्वामी अमरेश्वरानंद जी महाराज, अयोध्या धाम के श्रीमुख से ।

महाराज जी के बारे में

श्री अमरेश्वरानंद जी महाराज, एक ऐसे संत का नाम है, जिन्‍होंने अपनी अद्भुत व अतुल्‍य वाणी से श्रीराम कथा व श्री हनुमंत कथा, बड़ी ही सूक्ष्‍म विवेचना, मधुरता व भावमयी प्रस्‍तुति के साथ हम आप तक पहुंचाई है।

राम चरित मानस के एक प्रसिद्ध व्याख्याता हैं और महाराज जी भारत में दो दशक से अधिक समय से राम कथाओं का पाठ कर रहे हैं।
उनकी कथा का समग्र लोकाचार सार्वभौमिक शांति और सत्य, प्रेम और करुणा का संदेश फैलाना है। जबकि केंद्र बिंदु स्वयं धर्मग्रंथ है, बापू अन्य धर्मों से उदाहरण लेते हैं और सभी धर्मों के लोगों को प्रवचन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं।
गुरुदेव श्री ने अपना अधिकांश बचपन अपने दादा और गुरु, त्रिभोवनदास दादा और दादी अमृत माँ की देखरेख में बिताया। जबकि उनकी दादी घंटों तक उन्हें लोककथाएँ सुनाया करती थीं, उनके दादाजी उनके साथ राम चरित मानस के बारे में अपना ज्ञान साझा करते थे। बारह वर्ष की आयु तक, बापू ने संपूर्ण राम चरित मानस को याद कर लिया था और चौदह वर्ष की आयु में राम कथा का पाठ और गायन शुरू कर दिया था।
गुरुदेव श्री एक आध्यात्मिक और मानववादी गुरु हैं। उन्होंने तनावमुक्त एवं हिंसामुक्त समाज की स्थापना के लिए एक अभूतपूर्व विश्वव्यापी आंदोलन चलाया है। विभिन्‍न कार्यकर्मों अब तक अनुमानतः 45 करोड़ लोगों तक पहुँच चुके हैं। गुरुदेव ने ऐसे अनोखे एवं प्रभावशाली कार्यक्रमों का विकास किया है, जिन्‍होंने व्‍यक्ति को वैश्विक, राष्‍ट्रीय, सामुदायिक और व्यक्तिगत स्तरों पर चुनौतियों से निपटने के लिए सशक्त , सुसज्जित और परिवर्तित किया है।
युवा सशक्तीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत आंतरिक शहरों और स्कूलों में सामूहिक हिंसा, नशा और शराब की लत की समस्याओं से निपटा जा रहा है।
व्यक्तिगत स्तर पर, गुरुदेव के आत्म-विकास कार्यक्रमों ने लोगों को तनाव से राहत देकर उन्हें शांत और स्वस्थ रहने में मदद की है। कहते हैं कि सांस शरीर और मन के बीच एक कड़ी की तरह है जो दोनों को जोड़ती है। इसे मन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

कहते हैं कि सांस शरीर और मन के बीच एक कड़ी की तरह है जो दोनों को जोड़ती है। इसे मन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि ध्यान के अलावा दूसरे लोगों की सेवा भी इंसान को करनी चाहिए। वे विज्ञान और आध्यात्म को एक-दूसरे का विरोधी नहीं, बल्कि पूरक मानते हैं। वे एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं जिसमें रहने वाले लोग ज्ञान से परिपूर्ण हो ताकि वे तनाव और हिंसा से दूर रह सकें।

महाराज जी के विचार

वैराग्य का अर्थ संसार से भागना नहीं है !
जब आप वैराग्य में नहीं होते हैं तो क्या होता है? आप अतीत या भविष्य से जुड़े होते हैं इसलिए आप वर्तमान से शत- प्रतिशत जुड़े नहीं होते हैं| इसलिए आप अधिक विभाजित होते हैं। क्या आपको यह समझ आया? इसलिए जब आपका दिमाग भविष्य में किसी चीज़ की उम्मीद कर रहा हो या अतीत पर पछतावा कर रहा हो तो यह उस पल के साथ शत प्रतिशत नहीं है जिसका अर्थ है कि यह पहले से ही विभाजित है। जब आप पूरी तरह से केंद्रित होते हैं और आप दुनिया में कुछ भी कर रहे होते हैं तो आप हर पल शत प्रतिशत होते हैं। तो आप भोजन कर रहे हैं, आप शत प्रतिशत भोजन कर रहे हैं, उस समय आप अपने द्वारा लिए जा रहे सूप के हर घूंट को अनुभव कर सकते हैं, भोजन का स्वाद बढ़िया लगता है और हर दृष्टि में ताज़ा और नया होता है, इसलिए आपका प्रेम हर क्षण, प्रथम प्रेम की तरह है। आप किसी को भी देखें, कुछ भी देखें, चाहे वह एकदम नया ही हो वह बहुत ही आकर्षक लगता है|
वैराग्य में आनंद खोता नहीं है| वैराग्य आपको वह आनंद देता है जो कहीं और से नहीं मिल सकता | शंकराचार्य ने एक बहुत सुंदर बात कही है – “कस्य सुखं न करोति विरागा” ऐसा कौन सा सुख है जो वैराग्य से नहीं मिलता? इससे सारे सुख मिलते हैं है क्योंकि आप प्रत्येक क्षण वर्तमान में हैं| ये आपको शत प्रतिशत वर्तमान में रखता है | संसार में तथाकथित वैराग्य बड़ा शुष्क लगता है| जो लोग सोचते हैं कि वे बहुत ही प्रताड़ित हैं, उदासीन हैं, दुखी हैं, वे दुनिया से भाग जाते हैं और फिर वे कहते हैं, मैंने दुनिया को त्याग दिया है, यह कोई त्याग नहीं है। लोग, असफलताओं से, दुःख से, पीड़ा से बचने के लिए भाग खड़े होते हैं और स्वयं को कहते हैं कि वैराग्य में आ गये| वैराग्य बहुत बहुमूल्य है यदि आप वैरागी हैं तो आप बहुत केन्द्रित होंगे, आनंद से परिपूर्ण, पूरी तरह से संतुष्ट | हर व्यक्ति वैसा होना चाहेगा |
जब सिकंदर भारत आया तो उसे लोगों ने सलाह दी कि अगर कोई साधू सन्यासी मिले तो उसे यहाँ पकड़ ले आना| वहाँ के साधू बहुत कीमती हैं| तो उसने आदेश दिया कि साधु उसके समक्ष आये| उसने कहा पंडितों अगर तुम नहीं आये तो मैं तुम्हारा सर कलम कर दूँगा| जब लोग इस पर भी सहमत नहीं हुए तो उसने कहा अगर तुम लोग नहीं आये तो मैं तुम्हारी सारी किताबें, सारे वेद ले लूँगा| ऐसा उसने आदेश दिया | इस पर साधुओं ने कहा ठीक है, कल शाम को ले जाना| तो इन पंडितों ने क्या किया कि अपने शिष्यों को रात भर में सभी वेद कंठस्थ करवा दिए और पांडुलिपियां उठाकर सिकंदर को दे दीं और कहा कि ले जाओ अब हमें इसकी आवश्यकता नहीं है!
वह तो एक संन्यासी को पकड़ना चाहता था और संन्यासी आया ही नहीं। अंत में उसे उसके पास जाना पड़ा और उसने कहा, “ठीक है, तुम आ रहे हो या नहीं? अगर तुम मेरे साथ नहीं आये तो मैं तुम्हारे सिर को काट दूंगा । संन्यासी ने कहा- ‘मेरा सिर को काट दो, मैं देख लूंगा’ और फिर उसके बाद सिकंदर उस संन्यासी की आंखों में नहीं देख नहीं पाया| वह वैराग्य की शक्ति को बर्दाश्त नहीं कर पाया| यहाँ सिकंदर के सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसने पहली बार एक सम्राट की कोई परवाह नहीं की।
जब सिकंदर ने भारत में प्रवेश किया, तो कुछ लोगों ने उसे सोने की थाली में सोने की रोटी भेंट की| उसने कहा कि मुझे भूख लगी है, मुझे रोटी दे दो, मैं भोजन करना चाहता हूँ। लोगों ने उससे कहा आप एक सम्राट हैं, आप गेहूं की रोटी कैसे खा सकते हैं? इसलिए हम आपके लिए एक सोने की रोटी लाये हैं। उसने कहा, ‘नहीं नहीं आप इस समय मेरा मजाक उड़ा रहे हैं? मैं भूख से मर रहा हूँ, मैं मर रहा हूँ, अब आप मुझे रोटी दे दें|’ तब लोग उसके लिए उसे रोटी लाए।
लोगों ने उससे कहा, क्या आपको यह रोटी नहीं मिलती है? और अगर आपको यह रोटी मिलती है तो फिर आपको पूरी दुनिया को क्यों जीतना है? इन सभी जगहों पर भी तो यही रोटी मिलेगी| आपने भी वही रोटी खाई जो हमने यहाँ खाई है| इस बात ने सिकंदर को एक पल के लिए हिला दिया। यह सच है। राज्य के बाद राज्य को जीतने में क्या बात है, आप सभी को शांति से, खुशी से रहना है और जब आपके पास वह शांति नहीं है, जब लोग आपकी देखभाल और चिंता नहीं कर रहे हैं, ऐसे में सभी गांवों और सभी शहरों पर आपकी मुहर का कोई मतलब नहीं है।
इसलिए सिकंदर ने कहा, “ठीक है, जब मेरी मृत्यु हो तो मेरा हाथ खुला रहना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि जो सिकंदर महान था, वह खाली हाथ जा रहा है। वह इस धरती से एक चीज़ नहीं ले जा सका।
तो वैराग्य में ऎसी शक्ति है। यहाँ तक ​​कि यदि ईश्वर या उनके दूत आकर धन आदि देने की कोशिश करें तो भी हमें उनसे कुछ भी लेने की आवश्यकता नहीं है। यही प्रपंच की ताकत है। मेरा मतलब है कि यह अहंकार नहीं है, यह केन्द्रित होना है। आप इतने केंद्रित हैं, इतने शांत हैं तभी आप समझ सकते हैं कि जो भी इस दुनिया में आए हैं, वे दुनिया को कुछ देने आए हैं, यहां से कुछ लेने के लिए नहीं। तब आप एक अलग ही भाव में होते हैं !

महाराज जी के विचार

वैराग्य का अर्थ संसार से भागना नहीं है
जब आप वैराग्य में नहीं होते हैं तो क्या होता है? आप अतीत या भविष्य से जुड़े होते हैं इसलिए आप वर्तमान से शत- प्रतिशत जुड़े नहीं होते हैं| इसलिए आप अधिक विभाजित होते हैं। क्या आपको यह समझ आया? इसलिए जब आपका दिमाग भविष्य में किसी चीज़ की उम्मीद कर रहा हो या अतीत पर पछतावा कर रहा हो तो यह उस पल के साथ शत प्रतिशत नहीं है जिसका अर्थ है कि यह पहले से ही विभाजित है। जब आप पूरी तरह से केंद्रित होते हैं और आप दुनिया में कुछ भी कर रहे होते हैं तो आप हर पल शत प्रतिशत होते हैं। तो आप भोजन कर रहे हैं, आप शत प्रतिशत भोजन कर रहे हैं, उस समय आप अपने द्वारा लिए जा रहे सूप के हर घूंट को अनुभव कर सकते हैं, भोजन का स्वाद बढ़िया लगता है और हर दृष्टि में ताज़ा और नया होता है, इसलिए आपका प्रेम हर क्षण, प्रथम प्रेम की तरह है। आप किसी को भी देखें, कुछ भी देखें, चाहे वह एकदम नया ही हो वह बहुत ही आकर्षक लगता है|
वैराग्य में आनंद खोता नहीं है| वैराग्य आपको वह आनंद देता है जो कहीं और से नहीं मिल सकता | शंकराचार्य ने एक बहुत सुंदर बात कही है – “कस्य सुखं न करोति विरागा” ऐसा कौन सा सुख है जो वैराग्य से नहीं मिलता? इससे सारे सुख मिलते हैं है क्योंकि आप प्रत्येक क्षण वर्तमान में हैं| ये आपको शत प्रतिशत वर्तमान में रखता है | हर क्षण परम आनंद है | संसार में तथाकथित वैराग्य बड़ा शुष्क लगता है| जो लोग सोचते हैं कि वे बहुत ही प्रताड़ित हैं, उदासीन हैं, दुखी हैं, वे दुनिया से भाग जाते हैं और फिर वे कहते हैं, मैंने दुनिया को त्याग दिया है, यह कोई त्याग नहीं है। लोग, असफलताओं से, दुःख से, पीड़ा से बचने के लिए भाग खड़े होते हैं और स्वयं को कहते हैं कि वैराग्य में आ गये| वैराग्य बहुत बहुमूल्य है यदि आप वैरागी हैं तो आप बहुत केन्द्रित होंगे, आनंद से परिपूर्ण, पूरी तरह से संतुष्ट | हर व्यक्ति वैसा होना चाहेगा |
जब सिकंदर भारत आया तो उसे लोगों ने सलाह दी कि अगर कोई साधू सन्यासी मिले तो उसे यहाँ पकड़ ले आना| वहाँ के साधू बहुत कीमती हैं| तो उसने आदेश दिया कि साधु उसके समक्ष आये| उसने कहा पंडितों अगर तुम नहीं आये तो मैं तुम्हारा सर कलम कर दूँगा| जब लोग इस पर भी सहमत नहीं हुए तो उसने कहा अगर तुम लोग नहीं आये तो मैं तुम्हारी सारी किताबें, सारे वेद ले लूँगा| ऐसा उसने आदेश दिया | इस पर साधुओं ने कहा ठीक है, कल शाम को ले जाना| तो इन पंडितों ने क्या किया कि अपने शिष्यों को रात भर में सभी वेद कंठस्थ करवा दिए और पांडुलिपियां उठाकर सिकंदर को दे दीं और कहा कि ले जाओ अब हमें इसकी आवश्यकता नहीं है!
वह तो एक संन्यासी को पकड़ना चाहता था और संन्यासी आया ही नहीं। अंत में उसे उसके पास जाना पड़ा और उसने कहा, “ठीक है, तुम आ रहे हो या नहीं? अगर तुम मेरे साथ नहीं आये तो मैं तुम्हारे सिर को काट दूंगा । संन्यासी ने कहा- ‘मेरा सिर को काट दो, मैं देख लूंगा’ और फिर उसके बाद सिकंदर उस संन्यासी की आंखों में नहीं देख नहीं पाया| वह वैराग्य की शक्ति को बर्दाश्त नहीं कर पाया| यहाँ सिकंदर के सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसने पहली बार एक सम्राट की कोई परवाह नहीं की।
जब सिकंदर ने भारत में प्रवेश किया, तो कुछ लोगों ने उसे सोने की थाली में सोने की रोटी भेंट की| उसने कहा कि मुझे भूख लगी है, मुझे रोटी दे दो, मैं भोजन करना चाहता हूँ। लोगों ने उससे कहा आप एक सम्राट हैं, आप गेहूं की रोटी कैसे खा सकते हैं? इसलिए हम आपके लिए एक सोने की रोटी लाये हैं। उसने कहा, ‘नहीं नहीं आप इस समय मेरा मजाक उड़ा रहे हैं? मैं भूख से मर रहा हूँ, मैं मर रहा हूँ, अब आप मुझे रोटी दे दें|’ तब लोग उसके लिए उसे रोटी लाए।
लोगों ने उससे कहा, क्या आपको यह रोटी नहीं मिलती है? और अगर आपको यह रोटी मिलती है तो फिर आपको पूरी दुनिया को क्यों जीतना है? इन सभी जगहों पर भी तो यही रोटी मिलेगी| आपने भी वही रोटी खाई जो हमने यहाँ खाई है| इस बात ने सिकंदर को एक पल के लिए हिला दिया। यह सच है। राज्य के बाद राज्य को जीतने में क्या बात है, आप सभी को शांति से, खुशी से रहना है और जब आपके पास वह शांति नहीं है, जब लोग आपकी देखभाल और चिंता नहीं कर रहे हैं, ऐसे में सभी गांवों और सभी शहरों पर आपकी मुहर का कोई मतलब नहीं है।
इसलिए सिकंदर ने कहा, “ठीक है, जब मेरी मृत्यु हो तो मेरा हाथ खुला रहना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि जो सिकंदर महान था, वह खाली हाथ जा रहा है। वह इस धरती से एक चीज़ नहीं ले जा सका।
तो वैराग्य में ऎसी शक्ति है। यहाँ तक ​​कि यदि ईश्वर या उनके दूत आकर धन आदि देने की कोशिश करें तो भी हमें उनसे कुछ भी लेने की आवश्यकता नहीं है। यही प्रपंच की ताकत है। मेरा मतलब है कि यह अहंकार नहीं है, यह केन्द्रित होना है। आप इतने केंद्रित हैं, इतने शांत हैं तभी आप समझ सकते हैं कि जो भी इस दुनिया में आए हैं, वे दुनिया को कुछ देने आए हैं, यहां से कुछ लेने के लिए नहीं। तब आप एक अलग ही भाव में होते हैं !

हमारा लक्ष्य

श्री अमरेश्वरानंद जी महाराज के पवित्र मैदान में आपका स्वागत है! यहां हमारा मिशन प्रकाश और करुणा के प्रतीक महाराज जी की विरासत का सम्मान करना और उसे कायम रखना है, जिनका जीवन अनगिनत आत्माओं को प्रेरित और मार्गदर्शन करता रहता है। भक्ति से भरे दिलों और महाराज जी की विरासत से प्रेरित होकर, हम पूरे दिल से महाराज जी के विचारो को अपनाते हैं। जैसे-जैसे हम इस पवित्र मार्ग पर चलते हैं, हम करुणा, विनम्रता और असीम प्रेम के बारे में अपनी समझ में वृद्धि कर सकते हैं जिसका उदाहरण महाराज जी ने अपने जीवनकाल में दिया।

हमारा उद्देश्य

हम महाराज जी के जीवन के उद्देश्य, उनके द्वारा अपनाए गए मूल्यों और दुनिया पर उनके द्वारा किए गए सकारात्मक प्रभाव की गहरी समझ को बढ़ावा देने में विश्वास करते हैं। समुदाय की इस भावना के माध्यम से, हम गहरे संबंधों को बढ़ावा देने और सभी आगंतुकों के लिए एक सहायक वातावरण बनाने की आशा करते हैं।अंततः, महाराज जी का जीवन एक परिवर्तनकारी यात्रा है जो आपको प्रतिबिंबित करने, सीखने और बढ़ने के लिए आमंत्रित करती है। हम आपको [संत का नाम] के गहन ज्ञान, दयालु भावना और असाधारण जीवन में डूबने के लिए आमंत्रित करते हैं।

महाराज जी द्वारा जब कथाओं का ​सूक्ष्म विवेचन किया जाता है तो श्रोतागण भक्ति भाव में गोते लगाते हुये ऐसे अनेक अनकहे व अनसुलझी समस्याओ से परिचित होते हैं जिसका उचित समाधान एवं मोचन महाराज जी के अमृत वचन द्वारा होता हैं।

आज समाज में विखराव, भौतिक चीजों के लिए संघर्ष, आक्रोश, असंतोष, मानसिक अवसाद और अहंकार व्याप्त हैं। ऐसे में महाराज श्री अपने प्रवचनों में भरत को सामने लाते है। कैसे भरत अयोध्या के राजसिंहासन को श्री राम को दे देते हैं। और फिर कैसे श्रीराम उसे भरत को लौटा देते हैं। भरत अहंकार, तृष्णा से मुक्त युवा हैं। राजमद तो अहंकारी को होता है। अहंकार तो रावण में है वो राजमद में है। राजा जनक चिंतकों के विमर्श पर नम्रता और सेवा भाव से जनतांत्रिक सत्ता का संचालन करते हैं। भरत ने अद्वितीय, अनुपम उदाहरण देकर सत्ता का संचालन किया। महाराज श्री अपने प्रवचन के जरिए बताते है कि सत्ता मद तो अकल्याणकारी है।
यह भोगने, संग्रह करने उत्पीड़न, उपेक्षा, प्रलोभन और विभाजन की चीज नहीं हैं। भजन सत्संग और प्रवचन कहने, सुनने के अलग अलग हेतु होते हैं। महाराज श्री भी लक्ष्य केंद्रित होकर भजन सत्संग और प्रवचन करते हैं। जीवन के बेहतर प्रबंधन के लिए अत्यंत आवश्यक आध्यात्मिक विकास के साथ विकसित समाज की स्थापना में मानव की भागेदारी पर केंद्रित होकर महाराज श्री जग हित के लक्ष्य पर आगे बढ़ रहे हैं ।
कथाओं पर केंद्रित उनके प्रवचन भजन और सत्संग का एक मात्र प्रयोजन होता है मानव समाज का हित संसार के समस्त प्राणियों का हित।उनके प्रवचन समाज में शिक्षा और अध्यात्म के बीच एक पुल का काम करते है। महाराज श्री का मत है कि रामचरितमानस और श्रीमद भगवद कथा प्रत्येक जीव के कल्याण और विकास के लिए है।

गुरुदेव श्री एक आध्यात्मिक और मानववादी गुरु हैं। उन्होंने तनावमुक्त एवं हिंसामुक्त समाज की स्थापना के लिए एक अभूतपूर्व विश्वव्यापी आंदोलन चलाया है। विभिन्‍न कार्यकर्मों अब तक अनुमानतः 45 करोड़ लोगों तक पहुँच चुके हैं। गुरुदेव ने ऐसे अनोखे एवं प्रभावशाली कार्यक्रमों का विकास किया है, जिन्‍होंने व्‍यक्ति को वैश्विक, राष्‍ट्रीय, सामुदायिक और व्यक्तिगत स्तरों पर चुनौतियों से निपटने के लिए सशक्त , सुसज्जित और परिवर्तित किया है।
युवा सशक्तीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत आंतरिक शहरों और स्कूलों में सामूहिक हिंसा, नशा और शराब की लत की समस्याओं से निपटा जा रहा है।
व्यक्तिगत स्तर पर, गुरुदेव के आत्म-विकास कार्यक्रमों ने लोगों को तनाव से राहत देकर उन्हें शांत और स्वस्थ रहने में मदद की है।