अखाड़ा प्राचीनकाल में भारत के साधु-सन्तों एवं युवाओं का ऐसा समूह या स्थान होता था जो संकट के समय में राजधर्म के विरुद्ध
परिस्थितयों में, राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के लिए कार्य करता था। इस प्रकार के संकट से राष्ट्र और धर्म दोनो की रक्षा के लिए अखाड़े के साधु अपनी अस्त्र विद्या का
उपयोग भी किया करते थे। इसी लिए अखाड़े के अन्तर्गत पहलवानों के लिए एक मैदान होता था जिसमें सभी अखाड़े के सदस्य शरीर को सुदृढ़ रखने और संकट के
समय में सुरक्षा की दृष्टि से खुद को एक से बढ़कर एक दाँव-पेच का अभ्यास किया करते थे। साथ ही अस्त्र विद्या भी सीखते थे। वर्तमान समय में भी अखाड़े होते हैं
जो आज भी राष्ट्र को संकट में आने पर ज्ञान आदि से लोगों को सही राह पर लाने के लिए तत्पर रहते हैं। भारत के सबसे विशाल मेले कुम्भ में ये अखाड़े पूरी तन्मयता
से आज भी सम्मलित होते हैं और शाही स्नान किया करते है। इन अखाड़ों का एक अध्यक्ष होता जिसका चुनाव एक जटिल प्रक्रिया के अधीन होता है।